“स्वस्थ” विभाग की ‘आँखों’ पर पट्टी, जिले में अवैध डॉक्टरों को ‘सरकारी आशीर्वाद’!

शहडोल। संभागीय मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित छतवई गांव में लगभग 15 साल से बंगाली डॉक्टर का अवैध साम्राज्य फल-फूल रहा है। यह मात्र एक खबर नहीं, बल्कि जिला स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर एक करारा तमाचा है, जिसकी गूंज दूर तक जानी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि शहडोल का स्वास्थ्य विभाग ‘निष्क्रियता की डिग्री’ लेकर बैठा है, जिसने अपनी आंखें, कान और सबसे महत्वपूर्ण—ज़मीर—को ताक पर रख दिया है।

“स्वस्थ” विभाग, ‘अस्वस्थ’ व्यवस्था

 स्वास्थ्य विभाग को छतवई में अवैध प्रैक्टिस करने वाला डॉक्टर नहीं दिख रहा, जो एक छोटे से गांव में धड़ल्ले से अपना ‘अस्पताल’ चला रहा है! क्या विभाग के पास सिर्फ इतनी ही ‘क्षमता’ बची है कि वह मुख्यालय की चकाचौंध से बाहर कुछ देख ही नहीं पाता? या फिर उसने यह मान लिया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की जान की कीमत कम होती है?

  ‘लाइसेंस ऑन रेंट’

इन तथाकथित डॉक्टरों का यह दावा कि वे ‘मासिक किराए के मेडिकल लाइसेंस’ पर काम कर रहे हैं, विभाग की मिलीभगत का सबसे बड़ा प्रमाण है। यह एक ऐसा ‘कालाबाज़ारी मॉडल’ है, जिसके तहत स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी ही उनकी सबसे बड़ी ‘सहमति’ बन जाती है। क्या विभाग अब गैर-पंजीकृत चिकित्सकों को ‘अस्पताल’ चलाने की मासिक किश्त पर छूट दे रहा है?

 ‘झोलाछापों का स्वस्थ विभाग से रिश्तेदारी’

ऐसी खबरें शहडोल में पहले भी आती रही हैं, जहाँ अवैध डॉक्टर खुलेआम स्वास्थ्य विभाग से अपने ‘खास रिश्ते’ का हवाला देकर बच निकलते हैं। छतवई में ‘बंगाली डॉक्टर’ का सक्रिय होना बताता है कि या तो अवैधता का यह सिलसिला बहुत पुराना है, या फिर यह संरक्षण इतना मजबूत है कि कोई इसे छू नहीं सकता।

 ‘गरीबों की लूट और बैगा जनजाति का शोषण’

  स्वास्थ्य विभाग का प्राथमिक कर्तव्य सबसे कमजोर और पिछड़े वर्ग को सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है। लेकिन जब इन लोगों को अवैध डॉक्टर लूट और शोषण का शिकार बनाते हैं और विभाग कान में तेल डालकर सोया रहता है, तो यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि कर्तव्यहीनता और मानवीय संवेदनशीलता की कमी है।

‘डिस्पेंसरी’ बना ‘डिस्पेंसिंग यूनिट’

 यह खबर बताती है कि शहडोल का स्वास्थ्य विभाग एक देखरेख करने वाली संस्था से बदलकर, अवैध गतिविधियों को ‘डिस्पेंस’ करने वाली एक यूनिट में तब्दील हो गया है। सवाल कड़ा है, क्या विभाग की ‘आँखें’ तभी खुलेंगी, जब किसी गरीब ग्रामीण की जान इन फर्जी डॉक्टरों की अवैध ‘डिस्पेंसरी’ में चली जाएगी?

शहडोल के ज़िम्मेदारों को यह समझना होगा कि यह स्वस्थ विभाग नहीं, बल्कि अस्वस्थ व्यवस्था का प्रतीक है, जिसे तत्काल इलाज की सख्त जरूरत है।

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