शहडोल। जिले में इन दिनों कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमराती नजर आ रही है। हत्या, बलात्कार, चोरी, चेन स्नैचिंग, चाकूबाजी और सामुदायिक संघर्ष जैसी गंभीर आपराधिक घटनाओं ने शहडोल की शांति भंग कर दी है। आलम यह है कि अपराधी बेखौफ होकर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं, जबकि पुलिस प्रशासन असहाय दिख रहा है। जिले की जनता अब पुलिस कप्तान और आला अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठा रही है।
किसकी नाकामी? कप्तान या थाना प्रभारी?
जिले में अपराध का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है, उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह किसकी नाकामी है – थाना प्रभारियों की, जो जमीनी स्तर पर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं, या फिर पुलिस कप्तान की, जो पूरे जिले की पुलिसिंग के मुखिया हैं। संगठित होकर दोहरी हत्या की घटना हो या फिर सामुदायिक संघर्ष, पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह से विफल नजर आ रहा है। यह स्पष्ट संकेत है कि निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक मॉनिटरिंग और जवाबदेही में कहीं न कहीं बड़ी चूक हुई है।
अपराधियों का बेखौफ होना और पुलिस की निष्क्रियता
यह चिंताजनक है कि अपराधी अब न सिर्फ आम जनता को निशाना बना रहे हैं, बल्कि पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूक रहे हैं। ब्यौहारी में एएसआई की जान ले लेना इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि अपराधियों में पुलिस का भय समाप्त हो चुका है। चोरी, चेन स्नैचिंग, बलात्कार, हत्या और हिप्नोटाइज कर लूट जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। जनता का आरोप है कि पुलिस इन घटनाओं पर प्रभावी कार्रवाई करने के बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठी है। शहडोल की जनता ने पुलिस की ऐसी “असहाय” छवि पहले कभी नहीं देखी।
सामुदायिक तनाव और पुलिस की छवि पर दाग
धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान पत्थरबाजी और दो समुदायों के आमने-सामने आने की घटनाओं ने जिले में सांप्रदायिक सौहार्द को गहरी ठेस पहुंचाई है। इन गंभीर परिस्थितियों को नियंत्रित करने में पुलिस का रवैया इतना निष्क्रिय रहा कि लोगों का आक्रोश पुलिस कप्तान के सामने ही “शहडोल पुलिस मुर्दाबाद” के नारों के रूप में फूटा। शवों को सड़क पर रखकर चक्का जाम करना, जनता के बढ़ते रोष और पुलिस पर घटते विश्वास को दर्शाता है।
टालमटोल वाली कार्रवाई, क्या यही है शांति का संदेश?
गंभीर घटनाओं के बाद पुलिस कप्तान द्वारा की गई कार्रवाई भी सवालों के घेरे में है। केशवाही चौकी प्रभारी को लाइन अटैच करना और बुढार थाना प्रभारी को यातायात में प्रभार देना, क्या इतनी बड़ी आपराधिक विफलताओं के बाद पर्याप्त है? जनता का मानना है कि इतनी बड़ी घटनाओं के बाद यह कार्रवाई केवल “टालमटोल” है, जो समूचे जिले में “कानून व्यवस्था का राज” स्थापित करने का संदेश कतई नहीं दे सकती। लोगों का आक्रोश केवल ट्रांसफर या लाइन अटैचमेंट से शांत होने वाला नहीं है, उन्हें अब हर प्रकार के अपराध से मुक्ति चाहिए।
प्रभारी मंत्री के जिले में यह हाल, क्या आला अधिकारी बेखबर हैं?
यह और भी अधिक गंभीर है कि जिले के प्रभारी मंत्री प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं। बावजूद इसके, शहडोल का यह हाल प्रदेश के आला अधिकारियों की चुप्पी पर सवाल खड़े करता है। क्या प्रदेश के उच्च अधिकारियों को इन घटनाओं की सूचना नहीं मिल रही है? या उन्होंने भी शहडोल की जनता को उनके हाल पर छोड़ देने का फैसला कर लिया है? जब पुलिस प्रशासन से आशा करना भी व्यर्थ लगने लगे, तो जनता न्याय और सुरक्षा के लिए किससे गुहार लगाए?
जिले की वर्तमान स्थिति स्पष्ट रूप से यह मांग करती है कि पुलिस महानिदेशक और प्रदेश के गृह विभाग को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। पुलिस को अपने सूचना तंत्र को मजबूत करना होगा, अपराधियों के खिलाफ कठोर और त्वरित कार्रवाई करनी होगी, और थाना प्रभारियों की जवाबदेही तय करनी होगी। शहडोल की जनता को सुरक्षित माहौल और कानून व्यवस्था का राज वापस चाहिए।










