शहडोल। जिले की स्वास्थ्य सेवा की हकीकत को बयां करती यह तस्वीर किसी एक केंद्र की नहीं, बल्कि समूची व्यवस्था की कहानी है। यह जर्जर इमारत, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में “आयुष्मान आरोग्य मंदिर” लिखा है, दोपहर के वक्त भी जंग लगा ताला लटकाए हुए है। भले ही केंद्र के खुलने का निर्धारित समय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक हो, पर यह ताला न सिर्फ केंद्र के द्वार को बंद किए है, बल्कि उन हज़ारों ग्रामीणों के भरोसे और उम्मीदों को भी बंद कर रहा है जो इलाज के लिए यहां आते हैं। ये हाल संभागीय मुख्यालय से सटे ग्राम छतवई का है, दूरदराज के इलाके में क्या हाल होगा वो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
दवा नहीं, व्यवहार भी खराब
इस आरोग्य केंद्र पर तैनात कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर की बेबसी भी व्यवस्था की पोल खोलती है। नाम न छापने की शर्त पर एक ग्रामीण ने बताया कि केंद्र में दवाइयाँ उपलब्ध नहीं हैं। मरीज़ों को मामूली दर्द या बुखार की दवा भी मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ती है। अगर दवा ही नहीं है, तो मरीज़ यहां आएगा क्यों? हद तो तब हो जाती है जब समय पर स्टाफ नहीं आता। ग्रामीण मरीज़ों ने बताया की केंद्र अक्सर देरी से खुलता है और कई बार तो स्टाफ बिना किसी सूचना के अनुपस्थित रहता है। इससे भी ज़्यादा निराशाजनक है अधिकारियों का व्यवहार। मरीज़ों का कहना है कि स्वास्थ्य कर्मियों का रूखा और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार उन्हें निराश करता है। मनोवैज्ञानिक रूप से भी, एक डॉक्टर का अच्छा व्यवहार मरीज़ के आधे रोग को वैसे ही ठीक कर देता है। पर जब स्वास्थ्यकर्मी ही संवेदनहीनता दिखाएँगे, तो मरीज़ का हाल क्या होगा?
बदहाली के आंसू बहाती स्वास्थ्य व्यवस्था
यह आरोग्य केंद्र जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता का जीता-जागता उदाहरण है। एक तरफ सरकार ‘आयुष्मान भारत’ और ‘आरोग्यम्’ जैसी योजनाएं चलाकर स्वास्थ्य सुविधाएँ सुलभ कराने का दावा करती है, वहीं ज़मीनी हकीकत इसके विपरीत है। उपस्वास्थ्य केंद्रों की इस बदहाली का सीधा परिणाम यह है कि ग्रामीण इलाकों में ‘झोलाछाप’ डॉक्टरों का जाल बिछ गया है।
जब सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर ताला लटका हो, दवा न मिले और व्यवहार ठीक न हो, तो मजबूरी में ग्रामीण इन्हीं अयोग्य झोलाछाप लोगों के पास जाते हैं, जो अक्सर मरीज़ों की जान से खिलवाड़ करते हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस गंभीर स्थिति के लिए जिम्मेदार अधिकारी क्यों आँखें मूँदे बैठे हैं? क्या उन्हें इन केंद्रों की निगरानी नहीं करनी चाहिए? यह एक गंभीर विषय है जिस पर जिला प्रशासन को तत्काल ध्यान देने और कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि ग्रामीण जनता का सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा बहाल हो सके।











