शहडोल। आदिवासी बहुल जिला में भले ही सत्ताधारी दल के विधायक और सांसद हों, लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी कोई खास दमदारी नहीं है। जिले में विकास और जनहित के मुद्दों पर उनकी खामोशी साफ दिखती है, जिसका सीधा असर जिले के लोगों पर पड़ रहा है। कहने को जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनकी निष्क्रियता के कारण जिले में विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं, और आम जनता की समस्याओं में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
जनहित के मुद्दों पर खामोशी और निष्क्रियता
शहडोल के जनप्रतिनिधि अपने ही क्षेत्र के विकास और समस्याओं को लेकर सरकार के सामने कोई मजबूत पक्ष नहीं रख पा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि विधायक और सांसद दोनों ही जिले के मूलभूत मुद्दों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और सड़क कनेक्टिविटी को लेकर उदासीन हैं। उनकी इसी निष्क्रियता का नतीजा है कि कई महत्वपूर्ण योजनाएं या तो ठंडे बस्ते में पड़ी हैं या फिर उनकी गति बहुत धीमी है। स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल बुरा है, अस्पतालों में न डॉक्टर मिलते हैं और न ही पर्याप्त सुविधाएं। शिक्षा के क्षेत्र में भी यही हाल है, स्कूलों में शिक्षकों की कमी और आधारभूत संरचना का अभाव आम बात है। इन समस्याओं को लेकर जनप्रतिनिधियों की ओर से कोई ठोस पहल देखने को नहीं मिल रही है।
जनप्रतिनिधियों की खामोशी का परिणाम है NH 43 की बदहाली
देशभर में यातायात व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए भारत सरकार जहां सड़कों का व्यापक जाल बिछा रही है, वहीं शहडोल से उमरिया तक का राष्ट्रीय राजमार्ग-43 सरकारी दावों को झूठा साबित करता नजर आ रहा है। करीब 73 किलोमीटर लंबे इस मार्ग का निर्माण बीते नौ वर्षों से अधूरा पड़ा है। NH-43 की हालत बदहाल है और जब जनप्रतिनिधि ही कमजोर पड़ जाते हैं, तो जिले में प्रशासन पूरी तरह से बेलगाम हो जाता है, जिससे भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियाँ बढ़ती हैं।
यह स्थिति स्पष्ट करती है कि जब तक शहडोल के जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका को गंभीरता से नहीं लेंगे और विकास कार्यों को प्राथमिकता नहीं देंगे, तब तक जिले का विकास और सुगम यातायात केवल कागजी दावों तक ही सीमित रहेगा।
जनप्रतिनिधियों की अनदेखी का खामियाजा भुगतती जनता
जब जनप्रतिनिधियों की आवाज कमजोर होती है, तो उसका सीधा असर जनता पर पड़ता है। शहडोल में यही स्थिति देखने को मिल रही है। आम जनता की सुनवाई के लिए कोई प्रभावी मंच उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनके चुने हुए प्रतिनिधि ही सक्रिय नहीं हैं। लोगों का आरोप है कि अवैध रेत खनन, शराब का अवैध कारोबार और भू-माफिया का जाल बिना किसी रोक-टोक के फल-फूल रहा है, और इन गंभीर मुद्दों पर भी जनप्रतिनिधियों की ओर से कार्रवाई के लिए कोई दबाव नहीं बनाया जा रहा है। उनकी अनदेखी से ये समस्याएं और गंभीर होती जा रही हैं।
जनता में बढ़ता असंतोष
स्थानीय लोगों में अपने जनप्रतिनिधियों के प्रति असंतोष साफ नजर आ रहा है। उनका कहना है कि चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद वे सिर्फ दिखावटी कामों तक सीमित हो जाते हैं। उनकी निष्क्रियता के कारण लोगों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। यह स्थिति न केवल राजनीतिक असफलता को दर्शाती है, बल्कि जिले के भविष्य के लिए भी चिंताजनक है।
इस पूरे मामले से साफ है कि जब तक जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका को गंभीरता से नहीं लेंगे और जनता के प्रति अपनी जवाबदेही नहीं निभाएंगे, तब तक शहडोल में विकास और सुशासन की उम्मीद करना बेमानी होगा।











