शहडोल। जिले के किसानों की किस्मत अब भगवान भरोसे है, क्योंकि उनकी मदद के लिए तैनात कृषि विभाग की महारानी अपने दफ्तर के बाहर कदम रखने को तैयार नहीं हैं। कहा जाता है कि किसानों को राहत देने के लिए सरकार करोड़ों की योजनाएं भेजती है, लेकिन इन योजनाओं का लाभ उन तक पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देता है। वजह? यही ‘महारानियाँ’ जो फोन पर भी बात करना अपनी शान के खिलाफ समझती हैं।
एसी की हवा खाती हैं ‘साहिबा’
किसानों का आरोप है कि ये महिला कृषि विस्तार अधिकारी जिन्हें खेतों में घूमकर किसानों को जागरूक करना चाहिए, वे एसी की हवा में बैठकर अपनी ‘शाही ड्यूटी’ निभा रही हैं। किसान सुबह से शाम तक उनके दरवाजे पर खड़े रहते हैं, लेकिन उन्हें दर्शन नहीं मिलते। शायद ‘मैडम’ को धूप और धूल से एलर्जी है, या फिर उन्हें लगता है कि उनकी नाजुक हथेली किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए नहीं बनी।
योजनाएं कागजों पर, किसानों की जेब खाली
छतवई में पदस्थ महिला अधिकारी की मनमानी तो चरम पर है। किसान बताते हैं कि सरकारी योजनाएं जैसे खाद-बीज का वितरण, सिर्फ कागजों पर ही हो रहा है। जो बीज और खाद किसानों को मुफ्त में या सब्सिडी पर मिलनी चाहिए, वह कहीं और ही जा रहा है। किसान पूछते हैं कि जब योजनाओं की जिम्मेदारी ही ऐसे लोगों के हाथों में है, तो किसानों को फायदा कैसे मिलेगा? ऐसा लगता है मानो ये अधिकारी किसानों के लिए नहीं, बल्कि अपने निजी फायदे के लिए तैनात किए गए हैं।
*जिम्मेदार ‘आंखों पर पट्टी’ बांधे
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिला और संभाग स्तर के वरिष्ठ अधिकारी भी इस मनमानी से अंजान बने बैठे हैं। किसानों की शिकायतें उन तक पहुंचती हैं, लेकिन वे शायद ‘महारानियों’ पर कार्रवाई करना उचित नहीं समझते। या तो वे खुद इस पूरे खेल में शामिल हैं, या फिर उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास ही नहीं है। कुल मिलाकर, कृषि विभाग एक ऐसा तंत्र बन गया है जहां किसान ही परेशान है, और अधिकारी मस्त हैं।











