शहडोल। शहर में सीवर लाइन बिछाने के काम के दौरान हुए एक दर्दनाक हादसे ने निर्माण कार्य में बरती जा रही गंभीर लापरवाही और संबंधित कंपनी, शासन व प्रशासन की जवाबदेही पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। गुरुवार, 17 जुलाई को सोहागपुर थाना क्षेत्र के कोनी वार्ड नंबर-1 में सीवर लाइन के लिए खुदाई करते समय मिट्टी धंसने से दो मजदूरों, मुकेश बैगा (40) और महिपाल बैगा (33) की मौत हो गई। यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सुरक्षा मानकों की अनदेखी, ठेका कंपनी की मनमानी और सरकारी विभागों की उदासीनता का जीता-जागता प्रमाण है।
गंभीर सुरक्षा मानकों की अनदेखी
प्राप्त जानकारी के अनुसार, गुजरात की एक निजी कंपनी द्वारा सीवर लाइन बिछाने का काम किया जा रहा था। हादसे के समय मजदूर बिना किसी उचित सुरक्षा उपकरण या उपायों के 13 फीट गहरे गड्ढे में काम कर रहे थे। मिट्टी धंसने से वे उसके नीचे दब गए।
बारिश के बावजूद काम जारी
बताया जा रहा है कि हादसे के दिन और पहले शहडोल में बारिश हो रही थी। इसके बावजूद सीवर लाइन का काम जारी रखा गया, जो कंपनी की घोर लापरवाही को दर्शाता है। नगर पालिका अधिकारियों ने भी स्वीकार किया है कि कंपनी को पहले भी काम रोकने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन उसने इन निर्देशों का पालन नहीं किया।
कंपनी के मैनेजरों का गैर-जिम्मेदाराना रवैया
हादसे के तुरंत बाद कंपनी के कर्मचारी और अधिकारी मौके से फरार हो गए, जिससे उनकी जवाबदेही और भी संदिग्ध हो गई है। यह दर्शाता है कि उन्हें मजदूरों की सुरक्षा की कोई परवाह नहीं थी।
प्रशासन की सुस्ती और देरी से रेस्क्यू
मजदूरों के दबने के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन में करीब 15 घंटे का समय लगा, जिससे दोनों मजदूरों की मौत हो गई। स्थानीय लोगों ने भी एसडीआरएफ के घटनास्थल पर देरी से पहुंचने की बात कही है। यह प्रशासन की तत्परता और आपदा प्रबंधन की तैयारियों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
ठेके में निर्धारित नियमों का उल्लंघन
सीवर लाइन का यह प्रोजेक्ट 172 करोड़ रुपये का है, जिसे 13 दिसंबर 2023 तक पूरा होना था। समय पर काम पूरा न होने के कारण कंपनी को दिसंबर 2024 तक एक्सटेंशन दिया गया था। इसके बावजूद कंपनी द्वारा सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया जाना और प्रशासन द्वारा उस पर कोई प्रभावी कार्रवाई न करना, ठेके की शर्तों और सरकारी निगरानी पर सवाल उठाता है।
जिम्मेदारी किसकी?
इस दर्दनाक हादसे के लिए सीधे तौर पर सीवर लाइन बिछाने का ठेका लेने वाली कंपनी और उसके प्रबंधकों की लापरवाही जिम्मेदार है। बिना सुरक्षा उपायों के मजदूरों से काम करवाना और विपरीत मौसम में भी काम जारी रखना अक्षम्य अपराध है।
हालांकि, शासन और प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। यदि नगर पालिका ने पहले ही काम रोकने के निर्देश दिए थे, तो उनका पालन क्यों नहीं करवाया गया? निर्माण स्थलों पर सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या ठेका कंपनी पर उचित निगरानी रखी जा रही थी?
उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए जिला प्रशासन को पीड़ित परिवारों को शीघ्र सहायता पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। लेकिन, सिर्फ संवेदनाएं व्यक्त करना काफी नहीं होगा। इस मामले में उच्च स्तरीय जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
यह हादसा एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारे शहरों में विकास परियोजनाओं को अंजाम देते समय मानव जीवन की कीमत को अनदेखा किया जा रहा है? कंपनी के प्रबंधकों, संबंधित सरकारी विभागों और अधिकारियों की जवाबदेही तय होना आवश्यक है ताकि पीड़ितों को न्याय मिल सके और ऐसी लापरवाही पर अंकुश लगाया जा सके।
Author: सुभाष गौतम
जनहित के लिए बुलंद आवाज











