शहडोल। शहर में सीवर लाइन बिछाते समय हुए दुर्भाग्यपूर्ण हादसे ने दो जिंदगियां छीन लीं। यह सिर्फ एक “दुर्घटना” नहीं है, बल्कि यह एक व्यवस्थागत विफलता की ओर इशारा करती है जो अक्सर हमारे विकास की चमक के पीछे छिप जाती है।
विकास बनाम जीवन का द्वंद्व
यह हादसा एक कड़वा सच उजागर करता है। कई बार विकास की अंधी दौड़ में मानव जीवन की कीमत को कम आंका जाता है। सीवर लाइनें शहरीकरण के लिए आवश्यक हैं, लेकिन क्या उनकी स्थापना इतनी तेजी से होनी चाहिए कि मजदूरों की सुरक्षा को ताक पर रख दिया जाए? यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में सतत विकास की दिशा में बढ़ रहे हैं, जहां आधारभूत संरचना के साथ-साथ मानव कल्याण भी प्राथमिकता हो।
अदृश्य श्रमिक और उनकी कीमत
जिन मजदूरों की मौत हुई, मुकेश बैगा और महिपाल बैगा, वे ऐसे लाखों अदृश्य श्रमिकों में से हैं जो हमारे शहरों के निर्माण में अपना खून-पसीना बहाते हैं। वे अक्सर बिना उचित सुरक्षा उपकरण, प्रशिक्षण या सामाजिक सुरक्षा के काम करते हैं। उनकी मौत सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि उन परिवारों के सपनों का टूटना है जो उन पर निर्भर थे। यह हमें याद दिलाता है कि जब हम किसी नई सड़क, इमारत या सीवर लाइन का उपयोग करते हैं, तो उसके पीछे इन अदृश्य हाथों का श्रम और बलिदान होता है।
“डैमेज कंट्रोल” से परे, जिम्मेदारी का अभाव
हादसे के बाद प्रशासन और ठेका कंपनी का “डैमेज कंट्रोल मोड” में आना अपेक्षित था। लेकिन क्या यह केवल जनता के आक्रोश को शांत करने का प्रयास है? असली सवाल यह है कि क्या कोई वास्तव में इस त्रासदी की नैतिक जिम्मेदारी लेगा? अक्सर ऐसे मामलों में, निचली पंक्ति के कर्मचारियों या छोटे ठेकेदारों को बलि का बकरा बना दिया जाता है, जबकि बड़े खिलाड़ी बच निकलते हैं। हमें एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जहां शीर्ष स्तर पर जवाबदेही तय हो।
शहरीकरण की अनकही कहानियां
शहडोल जैसी घटनाएँ हमारे तेजी से बढ़ते शहरीकरण की अनकही कहानियाँ हैं। शहरों का विस्तार हो रहा है, लेकिन अक्सर यह योजनाबद्ध तरीके से नहीं होता। सीवर लाइन, सड़क, पुल – ये सभी विकास के प्रतीक हैं, लेकिन इनके निर्माण में जो जोखिम और चुनौतियाँ आती हैं, उन पर शायद ही कभी खुलकर बात की जाती है। यह हादसा हमें उन प्रक्रियाओं और नीतियों पर फिर से विचार करने का अवसर देता है जो हमारे शहरों को आकार देती हैं।
प्रकृति का पलटवार और मानवीय लापरवाही
बारिश के बावजूद काम जारी रखना प्रकृति के संकेतों को नजरअंदाज करना था। मिट्टी का धंसना केवल एक भौगोलिक घटना नहीं थी, बल्कि मानवीय लापरवाही और जोखिम भरे फैसले का परिणाम थी। यह हमें याद दिलाता है कि विकास परियोजनाओं में प्राकृतिक परिस्थितियों का सम्मान करना और उनके अनुरूप काम करना कितना महत्वपूर्ण है।
यह घटना हमें केवल मृतकों के लिए शोक करने से कहीं अधिक, अपनी प्रणालीगत खामियों पर विचार करने और मानवीय गरिमा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए मजबूर करती है।
हादसे के कई दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस जांच की गति धीमी चल रही है,शायद पुलिस को जिम्मेदारी तय करने और FIR दर्ज करने का दबाव का सामना करना पड़ रहा हो।
कौन है विजय सिंह…. जल्द
Author: सुभाष गौतम
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