“संवाद से क्यों कतरा रहे हैं अधिकारी?”

संभाग और जिले के आला अधिकारियों से दूरी: क्या जनता के हित में लिखने वाले पत्रकार खटकते हैं?

शहडोल। संभाग और जिले के आला अधिकारी आखिर क्यों स्थानीय समाचार और व्हाट्सऐप ग्रुपों से दूरी बना रहे हैं? यह सवाल आजकल मीडिया और आम जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। आमतौर पर, प्रशासन और जनता के बीच सीधा संवाद स्थापित करने के लिए ऐसे समूह एक महत्वपूर्ण माध्यम होते हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ के अधिकारी इन ग्रुपों में जुड़ने से कतरा रहे हैं। इस स्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जैसे कि क्या इन अधिकारियों को चाटुकारिता पसंद है और जो पत्रकार निष्पक्षता से जनता के मुद्दों को उठाते हैं, वे उनकी आँखों में खटकते हैं?

स्थानीय ग्रुपों से दूरी और संवादहीनता

एक समय था जब जिले के उच्च अधिकारी और पत्रकार एक ही मंच पर संवाद करते थे। व्हाट्सऐप ग्रुप जैसे डिजिटल माध्यमों ने इस संवाद को और भी आसान बना दिया था। इसके ज़रिए, अधिकारी न केवल पत्रकारों द्वारा भेजे गए महत्वपूर्ण समाचारों और शिकायतों पर तुरंत संज्ञान ले पाते थे, बल्कि वे अपनी गतिविधियों और योजनाओं की जानकारी भी साझा करते थे। लेकिन, अब यह ट्रेंड पूरी तरह से बदल गया है। कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इन ग्रुपों से खुद को अलग कर लिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि जनता से जुड़े कई गंभीर मुद्दे, जो स्थानीय पत्रकारों द्वारा उठाए जाते हैं, सीधे अधिकारियों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं।

यह स्थिति तब और भी चिंताजनक हो जाती है जब पत्रकार किसी जनहितैषी खबर या भ्रष्ट आचरण की जानकारी को ग्रुप में साझा करते हैं। ऐसे मामलों में, अक्सर देखा गया है कि या तो अधिकारियों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती या फिर वे ग्रुप छोड़कर अपनी असहमति ज़ाहिर करते हैं। इस रवैये से यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या प्रशासन सिर्फ उन ख़बरों और लोगों को पसंद करता है जो उसकी प्रशंसा करते हैं, और जनता के हितों की रक्षा करने वाली आलोचना उन्हें बर्दाश्त नहीं है?

अवैध कार्य और भ्रष्टाचार का बोलबाला

इसी बीच, जिले में अवैध गतिविधियों और भ्रष्टाचार के बढ़ने की खबरें भी लगातार आ रही हैं। रेत का अवैध उत्खनन, शराब की अवैध बिक्री, और भू-माफियाओं का बढ़ता दबदबा जैसी समस्याएं विकराल रूप ले चुकी हैं। इन कार्यों को रोकने के लिए प्रशासन द्वारा कोई प्रभावी कदम उठाए जाते नज़र नहीं आ रहे हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि इन अवैध कार्यों को कुछ राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण भी प्राप्त है।

स्थानीय पत्रकारों ने कई बार इन मुद्दों को उजागर किया है, लेकिन इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। अधिकारी इन शिकायतों को अनदेखा कर देते हैं, जिससे अवैध काम करने वालों के हौसले और बुलंद होते जा रहे हैं। जनता में यह धारणा बन रही है कि अधिकारियों को इन समस्याओं पर लगाम लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं है, या फिर वे जानबूझकर इन पर आँखें मूँद रहे हैं।

जिम्मेदार कौन?

यह पूरी स्थिति एक गंभीर चिंता का विषय है। यदि प्रशासन और मीडिया के बीच संवाद की कमी होती है, तो इसका सीधा असर जनता पर पड़ता है। प्रशासन के लिए यह समझना ज़रूरी है कि मीडिया सिर्फ आलोचना के लिए नहीं है, बल्कि वह जनता की आवाज़ बनकर प्रशासन को उसकी कमियों से अवगत कराता है। अगर अधिकारी जनता के हित में उठने वाली आवाज़ों को दबाने की कोशिश करेंगे या उनसे दूरी बनाएँगे, तो इससे प्रशासन की विश्वसनीयता और छवि को ही नुकसान पहुँचेगा।

क्या अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि संवादहीनता की यह दीवार न केवल प्रशासन और जनता के बीच, बल्कि सरकार और नागरिकों के बीच भी विश्वास की कमी पैदा करती है। यह सवाल अब भी बना हुआ है कि इन आला अधिकारियों को सिर्फ चाटुकार चाहिए या वे वाकई जनता के हित में काम करने वाले पत्रकारों को अपना सहयोगी मानेंगे? जब तक यह रवैया नहीं बदलता, तब तक जिले में अवैध कार्यों और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना एक कठिन चुनौती बनी रहेगी।

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