विकास का श्रेय बनाम भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी, आखिर जवाबदेह कौन?

शहडोल। जब जिले में विकास की बात होती है, तो उसका श्रेय लेने के लिए अक्सर सरकारी विभाग और अधिकारी आगे आते हैं। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स, नई सड़कें, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं इन सभी सफलताओं को प्रेस रिलीज़ और सार्वजनिक मंचों पर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है। अधिकारी अपनी पीठ थपथपाते हैं और सरकार की नीतियों की तारीफ की जाती है। लेकिन, जब बात उन्हीं विभागों में होने वाले भ्रष्टाचार, अनियमितताओं, या परियोजनाओं में देरी की होती है, तो जिम्मेदारी तय करने में अक्सर चुप्पी छा जाती है। सवाल उठता है कि जब सफलता का सेहरा सबके सिर पर होता है, तो विफलता और भ्रष्टाचार की जवाबदेही किसकी है?

विकास की वाहवाही, सामूहिक प्रयास का परिणाम

किसी भी जिले में होने वाले अच्छे कार्यों और विकास के पीछे एक लंबी प्रक्रिया होती है। इसमें न सिर्फ जिला प्रशासन, बल्कि विभिन्न शासकीय विभाग जैसे पीडब्ल्यूडी, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग, और स्थानीय निकाय भी शामिल होते हैं। इन सभी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों के सामूहिक प्रयासों से ही कोई योजना ज़मीन पर उतर पाती है। जब कोई पुल बनता है, या कोई स्कूल खुलता है, तो उसका श्रेय जिला प्रशासन से लेकर संबंधित विभाग के इंजीनियरों और कर्मचारियों तक को जाता है। यह एक सकारात्मक पक्ष है, जो काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहन देता है।

भ्रष्टाचार की काली छाया, जिम्मेदारी से बचना

इसके विपरीत, जब किसी प्रोजेक्ट में घटिया सामग्री का उपयोग होता है, या किसी योजना के लिए आवंटित फंड का दुरुपयोग होता है, तो स्थिति बिल्कुल बदल जाती है। भ्रष्टाचार के मामले सामने आने पर अक्सर एक-दूसरे पर दोषारोपण का सिलसिला शुरू हो जाता है। निचले स्तर के कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाती है, जबकि बड़े अधिकारी खुद को इस मामले से दूर रखने की कोशिश करते हैं। फाइलें गुम हो जाती हैं, जांच धीमी हो जाती है, और अंततः कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती।

जिम्मेदारी का सिद्धांत, जवाबदेही की श्रृंखला

प्रशासनिक सिद्धांत के अनुसार, जवाबदेही एक स्पष्ट श्रृंखला में तय होती है। सबसे पहले, जिस विभाग में भ्रष्टाचार हुआ है, उस विभाग का प्रमुख अधिकारी जिम्मेदार होता है। यदि भ्रष्टाचार की जानकारी होने के बावजूद उसने कोई कार्रवाई नहीं की, तो वह भी समान रूप से दोषी माना जाएगा।

विभाग प्रमुख

किसी भी विभाग में होने वाले वित्तीय लेनदेन और कार्यों की देखरेख की अंतिम जिम्मेदारी विभाग प्रमुख की होती है। यदि उसके विभाग में कोई अनियमितता होती है, तो वह इसकी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।

जिला प्रशासन

जिले में चल रही सभी योजनाओं की निगरानी और समन्वय की जिम्मेदारी जिला कलेक्टर की होती है। वे विभिन्न विभागों के कार्यों की समीक्षा करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि सभी काम तय समय और मानकों के अनुसार हों। यदि कोई बड़ी अनियमितता सामने आती है, तो इसकी जवाबदेही भी कलेक्टर की होती है।

राजनीतिक नेतृत्व

 अंततः, जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि और सरकार भी जवाबदेह होते हैं। उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे एक ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनाएं, जिसमें भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह न हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो।

पारदर्शिता और प्रभावी निगरानी की आवश्यकता

यह स्पष्ट है कि विकास का श्रेय लेने और भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति को रोकना होगा। इसके लिए पारदर्शिता और प्रभावी निगरानी सबसे ज़रूरी है।

सार्वजनिक जानकारी

सभी सरकारी परियोजनाओं का बजट, खर्च, और ठेकेदारों की जानकारी सार्वजनिक होनी चाहिए।

स्वतंत्र ऑडिट

 सरकारी योजनाओं का समय-समय पर स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा ऑडिट होना चाहिए।

कड़ी कार्रवाई

भ्रष्टाचार के मामलों में तुरंत और कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, चाहे वह अधिकारी कितना भी बड़ा क्यों न हो।

जब तक भ्रष्टाचार को केवल कुछ व्यक्तियों का दोष मानकर बड़े अधिकारियों को बख्शा जाता रहेगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। यह समय है जब विकास की वाहवाही के साथ-साथ, भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी भी उसी ईमानदारी और दृढ़ता से तय की जाए। तभी जनता का विश्वास प्रशासन पर कायम रह पाएगा।

सुभाष गौतम
Author: सुभाष गौतम

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