संरक्षण के नाम पर गरीबों पर अत्याचार हो रहा है?

 उमरिया।  बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हाल ही में हुई एक घटना ने वन्यजीव संरक्षण और स्थानीय आदिवासी समुदायों के अधिकारों के बीच के जटिल संघर्ष को एक बार फिर उजागर कर दिया है। रिजर्व की टीम ने 12 आदिवासी ग्रामीणों को जंगल में घुसकर पिहरी उखाड़ने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी ने न केवल आदिवासी समुदाय में रोष पैदा किया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या वन्यजीव संरक्षण के नाम पर कमजोर और गरीब लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, जबकि बड़े शिकारी और माफिया नेटवर्क बेरोकटोक घूम रहे हैं।

पिहरी उखाड़ना अपराध, लेकिन बड़े शिकारी आज़ाद?

वन विभाग के अनुसार, इन ग्रामीणों पर जंगल में अवैध रूप से प्रवेश करने और वन उपज को नुकसान पहुंचाने का आरोप है। उनके पास से 6 मोटरसाइकिलें भी जब्त की गईं और उन्हें अदालत में पेश किया गया।

स्थानीय कार्यकर्ताओं और आदिवासी समुदाय के नेताओं का तर्क है कि यह कार्रवाई प्रणाली की बहादुरी का एक दुखद उदाहरण है। उनका कहना है कि वन विभाग के पास असली टाइगर माफिया और बड़े शिकारियों के नेटवर्क को पकड़ने की हिम्मत नहीं है, जो बाघों की तस्करी और अवैध शिकार में लिप्त हैं। इसके बजाय, वे उन गरीब आदिवासियों को निशाना बनाते हैं जो सदियों से जंगल पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर रहे हैं। पिहरी जैसी जंगली उपज उनके भोजन और जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है।

आदिवासी अधिकार और परंपराओं का हनन

आदिवासी समुदाय के अनुसार, जंगल केवल वन्यजीवों का घर नहीं है, बल्कि यह उनकी जीवन रेखा और सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है। वन अधिकार अधिनियम 2006 स्पष्ट रूप से आदिवासियों को उनकी पारंपरिक भूमि और वन उपज पर अधिकार देता है। इस अधिनियम का उद्देश्य वन-आधारित समुदायों को सशक्त बनाना और उनके अधिकारों की रक्षा करना है।

हालांकि, अक्सर देखा गया है कि इन कानूनों को ठीक से लागू नहीं किया जाता है और संरक्षण के नाम पर आदिवासियों को उनके पारंपरिक अधिकारों से वंचित किया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की गिरफ्तारियां आदिवासी समुदायों में वन विभाग के प्रति अविश्वास को बढ़ाती हैं और उन्हें मुख्यधारा से और अलग करती हैं।

क्या संरक्षण का मतलब गरीबों को बेदखल करना है?

इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है: क्या वन्यजीव संरक्षण का एकमात्र तरीका स्थानीय समुदायों को उनके प्राकृतिक आवास से दूर रखना है? कई सफल संरक्षण मॉडल यह दिखाते हैं कि जब स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल किया जाता है, तो परिणाम अधिक स्थायी होते हैं।

इस मामले में, यह जरूरी है कि सरकार और वन विभाग इन गरीब आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों और जरूरतों को समझें। वन्यजीव संरक्षण तभी सफल हो सकता है जब वह मानव अधिकारों के साथ संतुलन बनाए रखे। जब तक बड़े शिकारी और माफिया नेटवर्क बेरोकटोक घूमते रहेंगे और गरीब आदिवासी अपने जीवनयापन के लिए दंडित होते रहेंगे, तब तक संरक्षण के प्रयास आधे-अधूरे ही रहेंगे और जंगल केवल बड़े और ताकतवर लोगों के लिए ही खुला रहेगा।

Leave a Comment

और पढ़ें

Cricket Live Score

Corona Virus

Rashifal

और पढ़ें